सांसदों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देंगे स्पीकर या लोकपाल? लोकसभा ने मांगी कानूनी राय
लोकसभा (Loksabha) ने आरोपित सांसदों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने के लिए कानूनी राय मांगी है. लोकसभा ने सवाल किया भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में सांसदों की चार्जशीट को हरी झंडी दिखाने के लिए स्पीकर या लोकपाल में से सक्षम प्राधिकारी (Authority) कौन होना चाहिए? लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, यह मुद्दा मुश्किल है. नारद-शारदा मामलों में पश्चिम बंगाल के लोकसभा सांसदों के आरोपपत्र के लिए सीबीआई की लंबित याचिकाओं को लेकर “अभियोजन के लिए मंजूरी” का विषय हाल ही में सुर्खियों में आया था. जबकि उनमें से तीन तृणमूल के हैं, एक टीएमसी (TMC) के पूर्व सांसद – सुवेंदु अधिकारी हैं-जो अब पश्चिम बंगाल में BJP के नेता प्रतिपक्ष हैं.
सीबीआई ने पहले अपने लंबित मामलों पर नोटिस भेजे थे. सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए मानदंड के अनुसार, लोकसभा के अध्यक्ष को नियुक्ति प्राधिकारी के रूप में माना जाता है, जिसकी अनुमति एक जांच एजेंसी के लिए संसद के सदस्य पर मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक है. उच्च सदन के मामले में राज्य सभा के सभापति का पद समान होता है. क्षेत्राधिकार भ्रष्टाचार के मामलों से संबंधित है जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के दायरे में आते हैं, जहां लोक सेवकों के लिए नियुक्ति प्राधिकारी से अभियोजन की मंजूरी जरूरी मानी जाती है.हालांकि, भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल, लोकपाल के अधिनियमन और नियुक्ति के बाद संसदीय अधिकारियों के दिमाग में स्थिति बदल गई है.
लोकपाल की नियुक्ति के बाद इस बात का अध्ययन किया जा रहा था कि सक्षम प्राधिकारी कौन है, लोकपाल या अध्यक्ष. बिड़ला ने कहा, “हम पहले ही दो प्रमुख हस्तियों से कानूनी राय ले चुके हैं. हालांकि, दोनों के विचार अलग-अलग थे, जिसके कारण इस मामले को इसके बारे में अधिक अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों के पास भेजा गया है.” लोकसभा सूत्रों ने कहा कि अधिकारी बेहद सावधानी बरत रहे हैं क्योंकि इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे. एक सूत्र ने कहा, “इसमें कुछ समय लग सकता है.इस मामले की व्याख्या करते हुए, लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा कि इस मुद्दे को शीर्ष अदालत ने सुलझा लिया है कि अध्यक्ष लोकसभा सांसदों के लिए नियुक्ति प्राधिकारी होंगे और ऐसी मंजूरी केवल भ्रष्टाचार के मामलों में आवश्यक थी.